माँ मातंगी
मातंगी देवी प्रकृति की देवी हैं, कला संगीत की देवी हैं, तंत्र की देवी हैं, वचन की देवी है, यह एकमात्र ऐसी देवी हैं, जिनके लिए व्रत नहीं रखा जाता है। यह केवल मन और वचन से ही तृप्त हो जाती हैं। भगवान शंकर और पार्वती के भोज्य की शक्ति के रूप में मातंगी देवी का ध्यान किया जाता है।
मातंगी देवी को किसी भी प्रकार के इंद्रजाल और जादू को काटने की शक्ति प्रदत्त है। देवी मातंगी का स्वरूप मंगलकारी है। वह विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री कर देवी हैं। पशु, पक्षी, ज॑गल आदि प्राकृतिक तत्वों उनका वास होता है। वह दस महाविद्याओं में नौवे स्थान पर हैं। मातंगी देवी श्री लक्ष्मी का ही स्वरूप हैं। नवरात्रि में जहा स्थान माँ सिद्धिदात्री को प्राप्त है वहा गुप्त नवरात्रि की नवमी को मातंगी देवी को अधिष्ठाप्ती देवी माना है। स्वरूप दोनों ही श्री लक्ष्मी के हैं।
मतंग ऋषि की पुत्री हैं माता मातंग, एक बार भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी जी, भगवान शिव तथा पार्वती से मिलने हेतु उनके निवास स्थान कैलाश शिखर पर गए। भगवान विष्णु अपने साथ कुछ खाने की सामग्री ले गये और शिवजी को भेट किए। भगवान शिव तथा पार्वती ने भोजन किया लेकिन कुछ अंश धरती पर गिरे। उन गिरे हुए भोजन के भागों से एक श्याम वर्णवाली दासी ने जन्म लिया, जो मातंगी नाम से विख्यात हुई।
अन्यत्र पुराणों में इन्हें मतंग ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारणउनका नाम मातंगी पड़ा। उनकी सर्वप्रथम आराधना भगवान विष्णु ने की। वह विष्णु जी की आद्य शक्ति भी मानी गई है। देवी मातंगी गहरे नीले रंग या श्याम वर्ण की हैं। अर्धचन्द्र धारण करती हैं। तीन नशीले नेत्र। रलमय सिंहासन पर आसीन हैं।
उनको कमल का आसन भी प्रिय है। वह गुंजा के बीजों की माला धारण करती हैं। चतुर्भुजी हैं लाल रंग के आभूषण भी धारण करती हैं दायें हाथों में वीणा तथा मानव खोपड़ी धारण रखी है तथा बायें हाथों में खड-ग धारण करती हैं। यह उनकी अभय मुद्रा हैतोतेहर समय इनके साथ हैं जो वाणी और वाचन के प्रतीक है। इनका परम धाम गुजरात के महेषाणा में स्थित है।